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संकीरॠण राषॠटॠरवाद की जमीन - कटॠटरपंथ की जमीन कैसे बनती है?

3 April 2014

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जनसतॠता 2 अपॠरैल, 2014

लालॠटू

कटॠटरपंथ की जमीन कैसे बनती है? आगामी चॠनावों में नवउदारवाद,

सांपॠरदायिकता और सॠविधापरसॠती के गठजोड़ से निकट भविषॠय में नरेंदॠर मोदी के पॠरधानमंतॠरी बनने और संघ परिवार की जड़ें और मजबूत होने की संभावनाठं लोकतांतॠरिक सोच रखने वाले सभी लोगों के लिठचिंता का विषय हैं। औसत भारतीय नागरिक घोर सांपॠरदायिक न भी हो, पर बॠते सांपॠरदायिक माहौल के पॠरति उदासीनता से लेकर सांपॠरदायिक आधार पर गॠे गठराषॠटॠरवाद में वॠयापक आसॠथा हर ओर दिखती है। आखिर तमाम तरह की मानवतावादी कोशिशों और धरती पर हर इंसान की ठक जैसी संघरॠष की सॠथिति की असीमित जानकारी होने के बावजूद ठसा कॠयों है कि दॠनिया के तमाम मॠलॠकों में लोग संकीरॠण राषॠटॠरवादी सोच के बंधन से छूट नहीं पाते! इस जटिलता के कई कारणों में ठक, शासकों दॠवारा जनता से सच को छिपाठरख उसे राषॠटॠरवाद के गोरखधंधे में फंसाठरखना है। इतिहास का ठसा नियंतॠरण महंगा पड़ता है।

पिछले पचास सालों से गोपनीय रखी गरॠइं दो सरकारी रिपोरॠटों पर डेॠसाल पहले चरॠचाठं शॠरू हॠई थीं। इनमें से ठक, 1962 के भारत और चीन के बीच जंग पर है। दूसरी, आजादी के थोड़े समय बाद हैदराबाद राजॠय को भारतीय गणराजॠय में शामिल करने के सिलसिले में हॠठआॅपरेशन पोलो नामक पॠलिस कारॠरवाई पर है। पहली रिपोरॠट को लिखने वाले भारतीय सेना के दो उचॠच-अधिकारी बॠरूकॠस और भगत थे। दूसरी रिपोरॠट ततॠकालीन पॠरधानमंतॠरी नेहरू के करीब माने जाने वाले पंडित सॠंदरलाल की अधॠयकॠषता में बनी ठक समिति ने तैयार की थी। पहली रिपोरॠट का ठक बड़ा हिसॠसा अब सारॠवजनिक हो चॠका है। दूसरी रिपोरॠट आज भी गोपनीय है, हालांकि अलग-अलग सूतॠरों से उसके कई हिसॠसे सारॠवजनिक हो गठहैं।

हमारे अपने अतीत के बारे में बहॠत सारी जानकारी हमें चीनी सॠरोतों से मिलती है। पॠराचीन काल से दोनों देशों के बीच घनिषॠठसंबंध रहे हैं। इन सब बातों के बावजूद भारत में चीन के बारे में सोच शक-शॠबहा पर आधारित है। भारत-चीन संबंधों पर हम सबने इकतरफा इतिहास पॠा है। हम यही मानते रहे हैं कि चीन ठक हमलावर मॠलॠक है। हम शांतिपॠरिय हैं और चीन ने हमला कर हमारी जमीन हड़प ली। ऑसॠटॠरेलियाई पतॠरकार नेविल मैकॠसवेल इस विषय पर लंबे अरसे से शोध करते रहे और उनॠहोंने कई पतॠर-पतॠरिकाओं में इस पर आलेख छापे। सीमा विवाद पर भारत के दावे से वे कभी पूरी तरह सहमत नहीं थे। चूंकि हम लोग चीन को हमलावर के अलावा और किसी नजरिठसे देख ही नहीं सकते, उनके आलेखों पर कम ही लोगों ने गौर किया। अब रिपोरॠट उजागर होने पर यह साबित हो गया है कि मैकॠसवेल ने हमेशा सही बात की थी।

रिपोरॠट में भारत की जिस ‘फॉरवरॠड पॉलिसी’ को गलत ठहराया गया है, उसका सीधा मतलब यही होता है कि भारतीय फौज ने घॠसपैठी छेड़छाड़ कर चीन को लड़ने को मजबूर किया। अकॠतूबर 1962 की उस जंग के कॠछ महीने पहले तक चीन ने कई तरीकों से कोशिश की कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर बातचीत हो, पर भारत का निरॠणय यह था कि हमारी इकतरफा तय की गई सीमाओं पर कोई बातचीत नहीं हो सकती।

यह सबको पता था कि दोनों देशों के बीच बहॠत सारा इलाका बीहड़ कॠषेतॠर है, जहां सैकड़ों मीलों तक कोई नहीं रहता, और सीमा तय करना आसान नहीं है। बीसवीं सदी के पहले पांच दशकों में चीन की हालत बड़ी खराब थी और खासकर पशॠचिमी सीमाओं तक नियंतॠरण रख पाना उनके लिठसंभव न था, इसलिठउपनिवेशवादी बरॠतानवी अफसरों ने जान-बूठकर भी चीन की सीमा को पीछे की ओर हटाया हॠआ था। भारत ने सॠथिति का पूरा फायदा उठाते हॠठ‘फॉरवरॠड पॉलिसी’ के तहत घॠसपैठकी। आखिर जंग हॠई, जिसमें भारत को शिकसॠत मिली।

आज भी सीमा विवाद पर भारत सरकार का रवैया बदला नहीं है। अपनी दकॠषिणी सीमा पर लगे तमाम मॠलॠकों में भारत ही ठक ठसा देश है, जिसके साथ चीन सीमा विवाद सॠलठाने में विफल रहा है। जबकि आज अंतरराषॠटॠरीय संसॠथाओं की मदद से और जीपीठस तकनीक के दॠवारा यह संभव है कि चपॠपे-चपॠपे तक जमीन मापी जा सके और सीमा सही-सही तय की जा सके। सही और गलत कॠया है, इस पर बहस हो सकती है। पर जब सरकार पचास सालों तक अपनी गलतियों को नागरिकों से छिपा कर रखती है तो यह गंभीर चिंता का विषय है।

हैदराबाद राजॠय के भारत में विलय के इतिहास के भी शरॠमनाक अधॠयाय हैं। हैदराबाद के निजाम के शासन में शहर हैदराबाद के बाहर रियासत में बेइंतहा पिछड़ापन था। जमींदार (जो तकरीबन सभी हिंदू थे) रिआया पर मधॠय-काल की तरह अतॠयाचार करते थे। इसी का परिणाम था कि तेलंगाना में उगॠर सामॠयवादी आंदोलन फैला और आजादी के दौरान और तॠरंत बाद के वरॠषों में इसने जनयॠदॠध की शकॠल अखॠतियार कर ली।

निजाम के सलाहकारों में इसॠलामी कटॠॠटरपंथियों की अचॠछी तादाद थी। हैदराबाद राजॠय ने भारत या पाकिसॠतान में विलय होने की जगह आजाद मॠलॠक रहना चाहा। सरदार पटेल के गृहमंतॠरी रहने के दौरान सिख और मराठा बटालियन की फौजें भेज कर पांच दिनों की लड़ाई के बाद हैदराबाद का भारत में विलय कर लिया गया।

निजाम की ओर से लड़ने वाले रजाकारों की संखॠया पांच हजार थी। रजाकारों ने कॠरूरता से ‘भारत में विलय के समरॠथकों’ का दमन किया। पर यह कम लोग जानते हैं कि भारतीय फौजें हैदराबाद के मॠसलमानों के साथ कैसे पेश आरॠइं। जब पंडित सॠंदरलाल समिति ने जांच की तो पता चला कि अड़तालीस हजार मॠसलमानों की हतॠया की गई थी, जिनमें से अधिकतर निरॠदोष थे। बलातॠकार और लूट

की इंतिहा न थी। चूंकि यह रिपोरॠट अभी तक सारॠवजनिक नहीं है, इसलिठइस आंकड़े की सचॠचाई पर सवाल उठसकते हैं। पर यह रिपोरॠट कॠयों छिपाई जा रही है?

ठसी कई बातें हैं, जहां सरकार का रवैया लोगों से सच छिपाने का है। इन दो रिपोरॠटों का उलॠलेख पॠरासंगिक है। कहा जा सकता है कि हमारा देश गरीब है और ठसी जानकारी जिससे लोगों में सरकार के पॠरति आसॠथा कम हो, उसे गोपनीय ही रहने दिया जाठतो बॠिया है। पर अगर हमारे पास संसाधनों की कमी है तो हमारी कोशिश यह होनी चाहिठकि हम सभी जरूरी बातों का खॠलासा करें ताकि सामूहिक और लोकतांतॠरिक रूप से ठसे निरॠणय लिठजाठं जो सबके हित में हों। सच यह है कि अगर हम अपने पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद सॠलठा लें तो हमारा सामरिक खरॠच बहॠत कम हो जाठगा और हम शिकॠषा, सॠवासॠथॠय आदि बॠनियादी मॠदॠदों पर उचित धॠयान दे पाठंगे। इसी तरह अतीत की गलतियों को हम मान लें तो समॠदायों के बीच बेहतर संबंध पनपेंगे और देश सरॠवांगीण उनॠनति की ओर बॠेगा।

इसके विपरीत ठसा राषॠटॠरवाद जो हमें भूखे और कमजोर रह कर पड़ोसी मॠलॠकों के साथ वैमनसॠय का संबंध बनाठरखने को मजबूर करता है, जो लघॠसंपॠरदायों परहॠठजॠलॠमों को नजरअंदाज करता है, वह हमारे हित में कतई नहीं है। इसका मतलब यह नहीं कि हम पड़ोसी मॠलॠकों के सामने घॠटने टेक दें या लघॠसंपॠरदायों की खामियों को अनदेखा करें। पर सच को छिपा कर और ठूठके आधार पर लोगों को भड़काठरख कर देश में सॠथिरता और संपनॠनता कभी नहीं आ सकती।

आज हम लगातार ठसी सॠथिति की ओर बॠरहे हैं कि इस तरह का संकीरॠण राषॠटॠरवाद लोगों के मन में घर करता जा रहा है। ठसा माहौल बनता जा रहा है कि तथॠयों को सामने लाने का औचितॠय कम ही दिखता है। ठक ओर नफरत की लहर में डूबे लोग हैं, दूसरी ओर उनको सॠविधापरसॠत लोगों का साथ मिल रहा है। पूंजी के सरगना, जिनको मानवता से कॠछ भी लेना-देना नहीं है, खॠलकर ठसे नेतृतॠव का समरॠथन कर रहे हैं जो देश को निशॠचित रूप से विनाश की ओर धकेल देगा।

ठक ठसा मॠखॠयमंतॠरी जो सॠवयं जेल जाने से बाल-बाल बचता रहा है, जिसके मंतॠरिमंडल में रहे ठक शखॠस को आजीवन कारावास मिला हॠआ है; राजॠय के पूरॠव पॠलिस पॠरमॠख और उसके सहयोगी जेल में बंद हैं, वह ठूठे विकास का नारा देकर और ऊलजलूल ठूठी बातें कर लोगों का समरॠथन जॠटाने में सफल हो रहा है।

पहली नजर में ये बातें ठक दूसरे से अलग लगती हैं। पर सचमॠच ये ठक-दूसरे से जॠड़ी हॠई हैं। ठक बड़े देश का नागरिक और मॠखॠय-धारा के साथ होने में ठक ठूठे गरॠव का अहसास होता है जो हमें अपॠरिय सच को जानने से दूर ले जाता है। जब तक यह अहसास सीमित रहता है और सामूहिक जॠनून में नहीं बदलता, तब तक कोई समसॠया नहीं है। जिस तरह का जॠनून और सांपॠरदायिकता नरेंदॠर मोदी के समरॠथन में सकॠरिय हैं, उसका उदाहरण बीसवीं सदी के यूरोप के इतिहास में है। तकरीबन नबॠबे साल पहले इसी तरह की घायल राषॠटॠरीयता की मानसिकता के शिकार इटली और जरॠमनी के लोगों ने कॠरमश: फासीवादियों और नाजी पारॠटी के लोगों को जगह दी। इनके सतॠता पर काबिज होने के बाद उन मॠलॠकों का कॠया हशॠर हॠआ वह हर कोई जानता है।

जरॠमन लोग आज तक यह सोच कर अचंभित होते हैं कि ठक पूरा राषॠटॠर यहूदियों के खिलाफ नसॠलवादी सोच का शिकार कैसे हो गया? विनाश के जो पैमाने तब तैयार हॠठऔर दूसरी आलमी जंग में इनके मितॠर देश जापान पर ठटमी बमों की जो मार पड़ी, उससे उबरने में कई सदियां लगेंगी। वैसी ही ताकतें भारत में भी अपनी जड़ें जमाने में सफल हो रही हैं और अगर वे सफल होती गरॠइं तो अगले दशकों में दकॠषिण ठशिया का हशॠर कॠया होगा, यह सोच कर भी भय होता है।

फासीवादी, नाजी, हिंदॠतॠववादी, तालिबानी और ठसी दीगर ताकतें ठूठऔर हिंसा के जरिठअमानवीयकरण की सॠथिति में जी रहे लोगों को बरगलाने में सफल होती हैं। कैसी भी राजनीतिक पॠरवृतॠति वाले दलों की हों, सरकारें सच को छिपा कर ठसी सॠथितियां पैदा करने में मदद करती हैं कि भॠखमरी और सामाजिक अनॠयायों के शिकार लोग ठूठे राषॠटॠरवादी गौरव में फंसे मानसिक रूप से गॠलाम बन जाठं। लोग यह देखने के काबिल नहीं रह जाते कि सतॠता में आते ही कटॠॠटरपंथी ताकतें आम नागरिकों के लोकतांतॠरिक अधिकारों पर हमला करेंगी। शिकॠषा में खासतौर पर इतिहास, राजनीति विजॠञान और साहितॠय जैसे विषयों में आमूलचूल बदलाव कर संकीरॠण सांपॠरदायिक और मानव-विरोधी सोच को डालने की कोशिश करेंगी।

आज कॠछ सच छिपाठजा रहे हैं तो कल बिलॠकॠल ठूठबातों को सच बना कर किताबों में डाला जाठगा और बचॠचों को वही पॠने को मजबूर किया जाठगा। विरोधियों के साथ हिंसक रवैया अपनाने में इन ताकतों को कोई हिचक नहीं। ठसी सभी ताकतों के खिलाफ और सच को सामने लाने के लिठआवाज बॠलंद करना जरूरी है। इसलिठसिरॠफ चॠनावी पटल पर मोदी और संघ परिवार का विरोध परॠयापॠत नहीं; देश के इतिहास, वरॠतमान और भविषॠय के साथ जॠड़े हर सच को उजागर करने की मांग साथ-साथ करनी होगी।

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P.S.

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