पॠरिय मितॠरो ,
बनारस की मेल -मोहबॠबत और गंगा - जमॠनी संसॠकृति खतरे में है। उस खतरे का सामना करने का साहस और सामरॠथॠय देती ननॠद किशोर नंदन जी की यह कविता पेशे खिदमत है —
काशी नगरी विशॠवनाथ की, दाता के दरबार की,
यह कबीर की à¤à¥‚मि, बॠदॠध की वरॠणा-करॠणा-धार की,
फूट डालकर हमें लड़ाने आया है, पहचान ली-
लॠटने देंगे नहीं विरासत मेल-मॠहबॠबत-पॠयार की।1
दो और तेरह के दंगों का
पहले हमें हिसाब चाहिà¤
मारे गये हजारों, बेघर
अब तक, आज जवाब चाहिठ,
à¤à¤¾à¤·à¤¾-वेश बदलकर ठगता, फितरत नर-संहार की
लॠटने देंगे नहीं विरासत मेल- मॠहबॠबत-पॠयार की।2
कॠया कसूर था इशरत का, जो
मासूमों का खून बहाया
इतनी नफ़रत, इतनी पशॠता
बूूंद बराबर रहम न आया,
बड़े-बड़ों को धूल चटातीं आहें हर लाचार की
लॠटने देंगे नहीं विरासत मेल- मॠहबॠबत-पॠयार की।3
दिलॠली के लालच में रैली
याद बनारस की अब आई,
हर हर मोदी खॠद बन बैठI
à¤à¥‚ल गये शिव की पॠरà¤à¥ ताई,
किस पर गरॠव? रौंदते जन को, सांसे मिलीं उधार की
लॠटने देंगे नहीं विरासत मेल- मॠहबॠबत-पॠयार की।4
यदि विकास की धारा समरस
मॠसॠलिम, दलित, कृषक कॠयों ओठल?
कूट रहे निरॠधन जनता को
ले धनियों से मूसल-ओखल,
तॠठको धनपतियों की चिनॠता उनके धन-विसॠतार की
लॠटने देंगे नहीं विरासत मेल- मॠहबॠबत-पॠयार की।5
जैसे साड़ी बॠने बनारस
वैसे ही रिशॠते बॠनता है
मजमा, à¤à¥€à¤¡à¤¼, तमाशा जो हो,
वह तो मानव को चॠनता है।
नहीं चलेगी यहां सियासत रिशॠतों के वॠयापार की।
लॠटने देंगे नहीं विरासत मेल- मॠहबॠबत-पॠयार की।6
यहां अजान-आरती गूंजे
à¤à¤°à¥‡ बहॠलता जीवन में रस
होने देंगे लाल न गंगा
मानवता की शान बनारस
राह दिखायी पॠरेमचंद ने पॠरेम, दया, उपकार की।
लॠटने देंगे नहीं विरासत मेल- मॠहबॠबत-पॠयार की।7
हमंे लड़ाकर करे सियासत
यह हमको सॠवीकार नहीं है,
वह न हमारा नायक होगा
जिसके दिल में पॠयार नहीं है।
कठिन परीकॠषा है विवेक की, चिनॠता यह संसार की
लॠटने देंगे नहीं विरासत मेल- मॠहबॠबत-पॠयार की।
(Prof. Nand Kishore Nandan)